Saturday, May 15, 2010

मैं चला जा रहा हूं....

राह-ए-मंज़िल कठिन है...लेकिन मैं चला जा रहा हूं।
इंतज़ार है तो बस मंज़िल का...
और मंजिल के इंतज़ार में...मैं बस चला जा रहा हूं।
ऐ खुदा तू मुझे बता कब तक का प्रोग्राम है मेरे चलने का...
इस प्रोग्राम के खत्म होने के इंतज़ार में....मैं बस चला जा रहा हूं।
मेरे खुदा अब तो कुछ रहम दिखा...
तेरे रहम के इंतज़ार में...मैं बस यूं ही चला जा रहा हूं।
इस राह-ए-मंजिल में ठोकरें तो तमाम हैं...
इन ठोकरों के खत्म होने के इंतज़ार में....मैं बस चला जा रहा हूं।
अब तो लगता है कि कुछ थक-सा गया हूं...
इस थकान के दूर होने के इंतज़ार में...मैं बस यूं ही चला जा रहा हूं।
तुझसे यही दरख्वास्त है मेरी, मेरे थकने से पहले मंज़िल पे पहुंचा दे मुझको...
और इस मंजिल के इंतज़ार में...मैं बस चला जा रहा हूं।
अब तो मेरे ज़हन में नज़ारा है तो बस उस मंज़िल का...
जिस मंज़िल के इंतज़ार में, मैं बस यूं ही चला जा रहा हूं।

Thursday, April 8, 2010

आज भी याद है मुझको

तेरा यूं मुस्कुरा के भाग जाना आज भी याद है मुझको
तेरा यूं हिचकिचा के ख़ामोश कर जाना आज भी याद है मुझको
तेरा आंखे दिखा के भूल जाना आज भी याद है मुझको
तेरा गलती करके माफी मांगना आज भी याद है मुझको
तेरी आंखों की खामोशियों का शोर आज भी याद है मुझको
तेरा होठों की थरथराहट आज भी याद है मुझको
मेरे सामने आकर तेरा यूं कंपकपाना आज भी याद है मुझको
तेरे चंचल मन की शररातें आज भी याद हैं मुझको
नज़रों के बाणों ये घायल करने की अदा आज भी याद है मुझको
मगर कुछ भूला हूं तो बस तेरा नाम भूला हूं
रुसवाई के डर से ही तेरा नाम भूला हूं
कुछ भूला हूं तो, तेरी गली रास्ता भूला हूं
तुझे भुलाने की चाह में ही, तेरी ग़ली का रास्ता भूला हूं
लेकिन, क्या करूं तेरी सादगी है की मुझको याद आती है
तेरी याद आती है, रातों को जगाती है, कुछ ज्यादा ही सताती है
इसीलिए तू आज भी याद है मुझको, आज भी याद है मुझको