मेरा बचपन खिलौनों की चाह में...यूं ही बीत गया...
वो सुनहरे पल...यूं ही गुज़र गए, मेरी चाह खिलौनों की यूं ही मर गई...
आज भी उनसे खेलने की ख्वाहिश है मेरी...
ये ही तो मेरे दिल में एक टीस है,
अब स्कूल में पढ़ने का मन हुआ मेरा...
घर के पास वाले उस बड़े से स्कूल में पढ़ने की ख्वाहिश थी मेरी...
लेकिन उस बड़े वाले स्कूल की बड़ी वाली फीस...
ना भर पाने की ही तो मेरे दिल में एक टीस है,
जैसे-तैसे उस बग़ल वाले टैंट के स्कूल में पढ़ाई की...
अब कॉलेज में पढ़ने की ख्वाहिश जाग गई...
क्या करूं हालात से परिचित होने के बावजूद...
ख्वाहिश को ना मार पाया...
उस बड़े वाले कॉलेज में ना पढ़ पाने की ही तो मेरे दिल में एक टीस है,
इसी दौरान हमें भी मुहब्बत हो गई...
जैसा की हमारी आदत में शुमार है...
मैंने इस बार भी ऐसी चाहत पाली...
जो ना थी कभी हमारी होने वाली...
बस उस मुहब्बत को ना पाने की ही तो मेरे दिल में एक टीस है,
अब मैंने ठाना की कुछ कर दिखाना है...
अपने इस हुनर से अपनी इस दुनिया को सजाना है...
लेकिन उसको कुछ और ही मंज़ूर था...
अपनी दुनिया को ना सजा पाने की ही तो मेरे दिल में एक टीस है,
अब इस टीस को लिए जिए जा रहा हूं...
ये टीस अब मेरी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा है...
यही मेरी ज़िंदगी का एक छोटा सा किस्सा है...
इस टीस ने मुझे मजबूत बना दिया है...
आने वाले वक्त के लिए बहुत कुछ सिखा दिया है।
3 comments:
तुम्हारे दिल में टीस है
क्योंकि तुम्हारे पास नहीं वो फीस है
जो चुका सको, तुम महंगे स्कूल की
और महंगी महबूबा की..
इस टीस ने मुझे मजबूत बना दिया है...
आने वाले वक्त के लिए बहुत कुछ सिखा दिया है।
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ...
बहुत सुंदर रचनाए है आपकी
हाल ही में मैंने ब्लॉगर ज्वाइन किया है आपसे निवेदन है कि आप मेरे ब्लॉग पढ़े और मुझे सही दिशा निर्देश दे
https://poetrykrishna.blogspot.com/?m=1
Dhnyawad
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