Thursday, June 11, 2009

जलन…

जी हां जलन...अगर जलन को ही दूसरे शब्दों में कहा जाए तो दूसरे की सफलता आंखों में खटकना...और वो भी जब...जब आपको पता हो की जो दूसरा कर सकता है वो मैं नहीं...कर सकता...ये वो जलन ही है जिसके चलते अच्छे से अच्छे दोस्त दुश्मन बन जाते हैं...आपका सवाल होगा की वो कैसे...तो सुनिए...एक ऑफिस की कहानी...जहां...एक व्यक्ति कार्यरत था जिसका नाम था...राम...वो इस संस्थान से जुड़ने से पहले कहीं और काम करता था जहां उसका एक दोस्त था...रहीम...अब राम ने तो नया ऑफिस ज्वॉइन कर लिया...तो ज़ाहिर सी बात है की उसकी जान-पहचान भी नए लोगों से हुई होगी...उनमें से ही एक था...श्याम...जो राम का जूनियर था...लेकिन दोनों के बीच की बॉंडिंग बहुत ही मज़बूत थी...लेकिन एक दिन राम का पुराना मित्र रहीम भी इस नए संस्थान से जुड़ गया...श्याम रहीम का भी जूनियर ही था...श्याम की रहीम के साथ भी अच्छी बनने लगी...यहां एक मोड़ आया...वो था काम को लेकर...रहीम बहुत ही अच्छा काम जानने वाला व्यक्ति था...जिससे श्याम काफी ज्यादा प्रभावित था...वो आए दिन राम से रहीम की तारीफ करता रहता था...जो शायद राम को अच्छा नहीं लगता था...धीरे-धीरे राम रहीम से जलने लगा...और ये जलन कब असुरक्षा(INSUCURITY) में बदली ये पता ही नहीं चला...और इसका परिणाम ये निकला की इस जलन के चलते उसने अपना एक दोस्त तो खोया ही साथ ही कही न कही एक ऐसे शागिर्द को भी खो दिया जो उसके एक इशारे पर मरने मारने को तैयार बैठा रहता था...इस कहानी से आपको समझ तो आया ही होगा की ये जलन क्या होती है...