Friday, March 11, 2011

मेरे दिल में एक टीस है...


मेरा बचपन खिलौनों की चाह में...यूं ही बीत गया...

वो सुनहरे पल...यूं ही गुज़र गए, मेरी चाह खिलौनों की यूं ही मर गई...

आज भी उनसे खेलने की ख्वाहिश है मेरी...

ये ही तो मेरे दिल में एक टीस है,

अब स्कूल में पढ़ने का मन हुआ मेरा...

घर के पास वाले उस बड़े से स्कूल में पढ़ने की ख्वाहिश थी मेरी...

लेकिन उस बड़े वाले स्कूल की बड़ी वाली फीस...

ना भर पाने की ही तो मेरे दिल में एक टीस है,

जैसे-तैसे उस बग़ल वाले टैंट के स्कूल में पढ़ाई की...

अब कॉलेज में पढ़ने की ख्वाहिश जाग गई...

क्या करूं हालात से परिचित होने के बावजूद...

ख्वाहिश को ना मार पाया...

उस बड़े वाले कॉलेज में ना पढ़ पाने की ही तो मेरे दिल में एक टीस है,

इसी दौरान हमें भी मुहब्बत हो गई...

जैसा की हमारी आदत में शुमार है...

मैंने इस बार भी ऐसी चाहत पाली...

जो ना थी कभी हमारी होने वाली...

बस उस मुहब्बत को ना पाने की ही तो मेरे दिल में एक टीस है,

अब मैंने ठाना की कुछ कर दिखाना है...

अपने इस हुनर से अपनी इस दुनिया को सजाना है...

लेकिन उसको कुछ और ही मंज़ूर था...

अपनी दुनिया को ना सजा पाने की ही तो मेरे दिल में एक टीस है,

अब इस टीस को लिए जिए जा रहा हूं...

ये टीस अब मेरी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा है...

यही मेरी ज़िंदगी का एक छोटा सा किस्सा है...

इस टीस ने मुझे मजबूत बना दिया है...

आने वाले वक्त के लिए बहुत कुछ सिखा दिया है।

Saturday, May 15, 2010

मैं चला जा रहा हूं....

राह-ए-मंज़िल कठिन है...लेकिन मैं चला जा रहा हूं।
इंतज़ार है तो बस मंज़िल का...
और मंजिल के इंतज़ार में...मैं बस चला जा रहा हूं।
ऐ खुदा तू मुझे बता कब तक का प्रोग्राम है मेरे चलने का...
इस प्रोग्राम के खत्म होने के इंतज़ार में....मैं बस चला जा रहा हूं।
मेरे खुदा अब तो कुछ रहम दिखा...
तेरे रहम के इंतज़ार में...मैं बस यूं ही चला जा रहा हूं।
इस राह-ए-मंजिल में ठोकरें तो तमाम हैं...
इन ठोकरों के खत्म होने के इंतज़ार में....मैं बस चला जा रहा हूं।
अब तो लगता है कि कुछ थक-सा गया हूं...
इस थकान के दूर होने के इंतज़ार में...मैं बस यूं ही चला जा रहा हूं।
तुझसे यही दरख्वास्त है मेरी, मेरे थकने से पहले मंज़िल पे पहुंचा दे मुझको...
और इस मंजिल के इंतज़ार में...मैं बस चला जा रहा हूं।
अब तो मेरे ज़हन में नज़ारा है तो बस उस मंज़िल का...
जिस मंज़िल के इंतज़ार में, मैं बस यूं ही चला जा रहा हूं।

Thursday, April 8, 2010

आज भी याद है मुझको

तेरा यूं मुस्कुरा के भाग जाना आज भी याद है मुझको
तेरा यूं हिचकिचा के ख़ामोश कर जाना आज भी याद है मुझको
तेरा आंखे दिखा के भूल जाना आज भी याद है मुझको
तेरा गलती करके माफी मांगना आज भी याद है मुझको
तेरी आंखों की खामोशियों का शोर आज भी याद है मुझको
तेरा होठों की थरथराहट आज भी याद है मुझको
मेरे सामने आकर तेरा यूं कंपकपाना आज भी याद है मुझको
तेरे चंचल मन की शररातें आज भी याद हैं मुझको
नज़रों के बाणों ये घायल करने की अदा आज भी याद है मुझको
मगर कुछ भूला हूं तो बस तेरा नाम भूला हूं
रुसवाई के डर से ही तेरा नाम भूला हूं
कुछ भूला हूं तो, तेरी गली रास्ता भूला हूं
तुझे भुलाने की चाह में ही, तेरी ग़ली का रास्ता भूला हूं
लेकिन, क्या करूं तेरी सादगी है की मुझको याद आती है
तेरी याद आती है, रातों को जगाती है, कुछ ज्यादा ही सताती है
इसीलिए तू आज भी याद है मुझको, आज भी याद है मुझको

Wednesday, November 25, 2009

26/11 ना भुलाया जाने वाला दर्द

26 नवंबर 2008...वो दिन जब देश पर हुआ अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला...जिसको झेला मायानगरी...मुंबई ने.....कभी ना रुकने वाली मुंबई भी उस दिन थम गई थी....वो कराह रही थी और लगा रही थी मदद की गुहार.....लेकिन पूरे साठ घंटे तक चला......मौत का नंगा नाच देखने वाली वो मुंबई आज भी उस मंज़र को याद कर सिसक उठती है....इस आतंकी हमले में किसी मां की गोद सूनी हुई.....कई औरतों ने सदा सुहागन होने का आशिर्वाद लेने के बाद बेवा होने का दर्द झेला.....कई बच्चों के सिरों से मां-बाप साया उठ गया....कई बहनें राखी बांधने वाले उस हाथ को आज भी ढूंढ रही हैं.....लेकिन ये इंतज़ार तो कभी ना खत्म होने वाला इंतज़ार बन गया है अब.....ये मुंबई है एक आम मुंबईकर से जो इसकी शान बढाता है.....लेकिन ये आम मुंबईकर आज भी उस काले दिन लगे दंश की टीस को झेल रहा है...इसकी टीस को झल रहे आम लोग आज भी अपने हक को पाने के लिए...दर-दर भटक रहे हैं...मुआवजों का ऐलान करना भर ही क्या सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है....जिसके बाद वो निश्चिंत होकर बैठी इन मज़लूमों की दास्तां के ज़रिए वोट बटोरने की तैयारी में लगी हुई है....26/11 के शिकार लोगों में से कुछ को आज तक ना तो किसी तरह का कोई मुआवजा मिला है....ना ही किसी तरह की कोई मदद....कई तो ऐसे भी हैं....जो ज़िंदगी भर अपाहिजों की जिंदगी जीने को मजबूर हैं....वो अपना दर्द आखिर किसके आगे बयां करे....क्योंकि इनकी तो सुनने वाला भी कोई नहीं......पहले ये लोग 26/11 के शिकार हुए फिर उसके बाद अब....सिस्टम और सरकार की उदासीनता के.......इस सरकारी वादाखिलाफी ने इनकी ज़िंदगी और भी बदतर कर दी है.....बीते दिनों 26/11 के शिकार हुए लोगों के पुनर्वास में हो रही देरी के चलते राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में एक पेटिशन भी दायर की गई है....जिसके तहत....याचिकाकर्ताओं की मांग है......भारत सरकार.....रेल मंत्रालय.....और महाराष्ट्र सरकार उस वक्त किये गए अपने वायदों को जल्द से जल्द पूरा करें......दरअसल 403 पीड़ितों में से सिर्फ 118 को ही अब तक मुआवजे की राशि मिली है वो भी प्रधानमंत्री राहत कोश में से....अपाहिजों की तरह गुज़र-बसर करने वाले ये लोग...क्या अपने हक की सिर्फ मांग ही करते रह जाएंगे या फिर....ये मांग ही इनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य बन कर रह जाएगी....

Friday, November 6, 2009

सच का सामना...

बीते दिनों स्टार प्लस पर एक रिएलिटी शो सच का सामना ने बहुत धूम मचाई....इसकी जमकर आलोचना भी की गई....इसने बहुत सुर्खियां भी बटोरीं....इस प्रोग्राम की बेहद प्रशंसा भी की गई....लेकिन क्या इसका कोई असर समाज पर पड़ा....? जिसके नाम पर आज के समझदार नेताओं ने इसे सदन में मुद्दा तक बना दिया....इन साहबज़ादों का कहना था....की इस कार्यक्रम का समाज पर बहुत ही बुरा असर पड़ेगा.....फिर भी दो-चार किस्से ऐसें सुनने को जरूर मिले जिनके ज़रिए इस प्रोग्राम पर उंगलियां उठीं...जो थे सच की वजह से जान गंवाने के......लेकिन क्या सच किसी की जान ले सकता है...? इस सवाल के जवाब का इंतज़ार मैं आज भी कर रहा हूं...यदि आप किसी बड़ी इमारत की नींव झूठ के मसाले पर बनाओगे तो उसका ढहना तो लाजिमी ही है...शायद...मेरे जैसे कई लोग इस बात से इत्तेफाक भी रखते हों...और कुछ इत्तेफाक ना रखते हों...इसी तरह आप अपने जीवन की शुरुआत झूठ से करेंगे तो भविष्य में होने वाली तबाही को रोकना नामुमकिन है....तो क्या इस तरह के शो को बंद करना सही है...? ये बात रही इस शो की लेकिन...कल ही की बात है...एक जनाब...जो की मेरे बेहद खास मित्रों में से हैं....मैंने उनका सामना एक सच से क्या करा दिया...उनके तो हाव-भाव ही बदल गए...बस सच की बुराई शायद यही है...की वो बहुत कड़वा होता है, जिसे हजम करना हर किसी के बस की बात नहीं है....अगर आपमें इसे हजम करने की ताकत है तो आप कुछ भी कर सकते हैं...मेरा तो मानना यही है...लेकिन इस घटना ने मुझे ये सोचने पर ज़रूर मजबूर कर दिया की सच कहीं-न-कहीं आपको आपके अपनों से दूर ज़रूर कर देता है...लोग कहते हैं की मुंहफट लोग बहुत अच्छे होते हैं लेकिन सच्चाई तो शायद कुछ और ही है...यदि जीवन अच्छे से जीना हो तो आपको एक बेहतर राजनीतिज्ञ होना ज़रूरी हो जाता है...क्या आप मेरी इस बात से सहमत हैं...?

Tuesday, November 3, 2009

बिगड़ैल ड्रैगन...एक और चाल

अपनी फितरत के मुताबिक....चीन ने एक बार फिर भारत पर दबाव बनाने की कोशिश शुरु कर दी है.....इस बार उसका मुद्दा हैं......तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा.....चीन ने दलाई लामा की अरूणाचल प्रदेश यात्रा को एक अलगाववादी गतिविधि करार दे दिया है......और कहा....लामा चीन और भारत के संबंधों में दरार डालने की कोशिश कर रहे हैं......दरअसल तिब्बतियों के धर्मगुरू दलाई लामा...अगले हफ्ते 8 नवम्बर को अरुणाचल दौरा करने वाले हैं.....जिसके कई हिस्सों पर चीन बहुत पहले से अपना दावा करता रहा है.....चीनी सरकार इस यात्रा का विरोध पहले भी कर चुकी है.....चीन ने दलाई लामा के इस दौरे की बार-बार आलोचना भी की है......चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने मंगलवार को दलाई लामा की गतिविधियों की निंदा की और कहा........दलाई लामा अक्सर झूठ बोलते हैं और अन्य देशों के साथ चीन के संबंधों को क्षति पहुंचाने की कोशिश में लगे रहते हैं.......वाह भई वाह......चीन को अगर कोई सच्चाई का आइना दिखा दे वो उसके बुरा हो जाता है.....जैसे दलाई लामा उसके लिए बुरे हैं......साथ ही उन्होंने विश्वास जताते हुए कहा......मुझे पूरा भरोसा है कि भारत के साथ चीन के संबंधों को क्षति पहुंचाने की दलाई लामा की कोशिशें सफल नहीं हो पाएंगी.....अब आप ही बताइये ये विश्वास फिजूल नहीं तो और क्या है......अरे भैया आपने विश्वास तो जता दिया लेकिन ये विश्वास जताया किस पर है.....मुगालते में तो रहना मत की भारत इस मामले में कुछ करेगा.....वहीं चीन नाम के इस गिरगिट अपना दूसरा रंग भी इसी मुद्दे के साथ एक नया मुद्दा उठाते हुए दिखाया.....चीन ने कश्मीर के लोगों के अलग वीजा देने की नीति अपना रखी थी...जिसको देखते हुए भारत नें कई बार विरोध भी दर्ज कराया.....लेकिन नतीजा निकला सिफ़र.........भारत ने मित्र देशों के नागरिकों के लिये व्यापारिक वीजा पालिसी को काफी आसान कर रखा था...नतीजन देश में काम हासिल करने वाली चीनी कंपनियां अपने अधिकारियों को तो लेकर आय़ी हीं......अपने मजदूर भी लेकर भारत आने लगे.......यानि की चीन को बच्चा समझकर कंधे पर बैठाया तो उसने कान में ही **** दिया.....चीन की इस हरकत को देखते हुए भारत ने व्यापरिक वीजा के नियमों में बदलाव किया जिस पर चीन को फिर आपत्ति है........भारत ने इसके बाद से वीजा देने के लिए कुछ कड़े दिशानिर्देश भी जारी किए हैं....जो शायद चीन को रास नहीं आ रहे हैं.....इसके मद्देनजर चीन का कहना है की....भारत में चल रहे कई कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट उधूरे पड़े हैं......और हमे इसका अफसोस है....वाह भैई फिजूल का अफसोस भी जता दिया....अफसोस जताने के बाद चीन का कहना है......हम वीजा की इस परेशानी का जल्द ही कोई हल निकाल लेंगे.....क्योंकि भारत को हमारे तकनीशियनों की जरूरत जरूर पड़ेगी.....वाह भैई सब कुछ करने के बाद भी ये आशा लगाए बैठें ड्रैगन जनाब की भारत ही उनके सामने हाथ फैलाकर.....उनसे उनके तकनीशियनों की मांग करेगा.....कभी-कभी इंसान को गलतफ़हमी में भी जीना चाहिए और चीन उसी गलतफ़हमी में जी रहा है.....।

Tuesday, August 25, 2009

आहट...

ज़ख्म मुस्कुराते हैं अब भी तेरी आहट पर,
दर्द भूल जाते हैं अब भी तेरी आहट पर...।

शबनमी-सितारों पर फूल खिलने लगते हैं,
चांद मुस्कुराते हैं अब भी तेरी आहट पर...।

उम्र काट दी लेकिन बचपना नहीं जाता,
हम दिए जलाते हैं अब भी तेरी आहट पर...।

तेरी याद आए तो नींद जाती रहती है,
हम ख़ुशी मनाते हैं अब भी तेरी आहट पर...।

अब भी तेरी आहट पर चांद मुस्कुराते हैं,
ख्वाब गुनगुनाते हैं, अब भी तेरी आहट पर...।

अब भी तेरी आहट पर आस लौट आती है,
अश्क हम बहाते हैं, अब भी तेरी आहट पर...।