Saturday, May 15, 2010

मैं चला जा रहा हूं....

राह-ए-मंज़िल कठिन है...लेकिन मैं चला जा रहा हूं।
इंतज़ार है तो बस मंज़िल का...
और मंजिल के इंतज़ार में...मैं बस चला जा रहा हूं।
ऐ खुदा तू मुझे बता कब तक का प्रोग्राम है मेरे चलने का...
इस प्रोग्राम के खत्म होने के इंतज़ार में....मैं बस चला जा रहा हूं।
मेरे खुदा अब तो कुछ रहम दिखा...
तेरे रहम के इंतज़ार में...मैं बस यूं ही चला जा रहा हूं।
इस राह-ए-मंजिल में ठोकरें तो तमाम हैं...
इन ठोकरों के खत्म होने के इंतज़ार में....मैं बस चला जा रहा हूं।
अब तो लगता है कि कुछ थक-सा गया हूं...
इस थकान के दूर होने के इंतज़ार में...मैं बस यूं ही चला जा रहा हूं।
तुझसे यही दरख्वास्त है मेरी, मेरे थकने से पहले मंज़िल पे पहुंचा दे मुझको...
और इस मंजिल के इंतज़ार में...मैं बस चला जा रहा हूं।
अब तो मेरे ज़हन में नज़ारा है तो बस उस मंज़िल का...
जिस मंज़िल के इंतज़ार में, मैं बस यूं ही चला जा रहा हूं।