Saturday, May 15, 2010

मैं चला जा रहा हूं....

राह-ए-मंज़िल कठिन है...लेकिन मैं चला जा रहा हूं।
इंतज़ार है तो बस मंज़िल का...
और मंजिल के इंतज़ार में...मैं बस चला जा रहा हूं।
ऐ खुदा तू मुझे बता कब तक का प्रोग्राम है मेरे चलने का...
इस प्रोग्राम के खत्म होने के इंतज़ार में....मैं बस चला जा रहा हूं।
मेरे खुदा अब तो कुछ रहम दिखा...
तेरे रहम के इंतज़ार में...मैं बस यूं ही चला जा रहा हूं।
इस राह-ए-मंजिल में ठोकरें तो तमाम हैं...
इन ठोकरों के खत्म होने के इंतज़ार में....मैं बस चला जा रहा हूं।
अब तो लगता है कि कुछ थक-सा गया हूं...
इस थकान के दूर होने के इंतज़ार में...मैं बस यूं ही चला जा रहा हूं।
तुझसे यही दरख्वास्त है मेरी, मेरे थकने से पहले मंज़िल पे पहुंचा दे मुझको...
और इस मंजिल के इंतज़ार में...मैं बस चला जा रहा हूं।
अब तो मेरे ज़हन में नज़ारा है तो बस उस मंज़िल का...
जिस मंज़िल के इंतज़ार में, मैं बस यूं ही चला जा रहा हूं।

11 comments:

Unknown said...

उम्दा लिखा है, आशा है चलते जाओगे, कभी नहीं रुक पाओगे, कठिन मार्ग पर बड़ी सफलता, इंशा अल्लाह पाओगे

Unknown said...

bahut khub......
intzaar hai isliye hi tum itne bekarar ho jo tumhari is lekhani me me saaf saaf feel kar raha hu...lekin kal jab tum ise pa loge jiska tumhe intzaar hai to fir kisi or cheez ka tum intzaar karoge.... zindgi me intzar hi intzaar hai.....isliye haar cheez pane se pehle intzaar hai...isliye agar tumhe kisi cheej ka intzaar hai to iska matlab hai tum jald hi use paane wale hai ....isliye intzaar me hi aane wali khushi chupi hai isliye....khush raho....or intzaar karte raho jab tak pa na lo jise pana chahte ho....or isi tarah likhte raho ...
ab yahi dekho ek intzaar tumhara aaj khatam ho gaya mere comment ka....to khush huye na.....yahi intzaar ke baad ki khushi hai........

दिलीप said...

bahut khoob sarkar...chalte rahiye aur aise hi kalam chalaate rahiye...

M VERMA said...

अब तो मेरे ज़हन में नज़ारा है तो बस उस मंज़िल का...
जिस मंज़िल के इंतज़ार में, मैं बस यूं ही चला जा रहा हूं।
चलना ही जिन्दगी है, चलना तो पड़ेगा ही.
सुन्दर रचना

ambrish singh said...

बहुत बड़िया दोस्त क्या खूब कल्पना की है...
चलते रहना ही ज़िन्दगी है...और उम्मीद है कि चलते ही रहना चाहिए...क्योकि न चलने वाले तो लाचार होते है...दोस्त

Madhukar said...

मंजिल सफर का अंत है, विकास का अंत है। चलना विकास है। विकास सतत् है। तो हे, रोहित क्यों अधीर होता है। बस चलता रह। मंजिल तो मौत है। हमारी इच्छाएं कभी नहीं मरतीं। इसलिए मेरी मंजिल तो मौत है और मैं जिंदगी को सफर मानता हूं रोज बढ़ता और चढ़ता रहना चाहता हूं नया आकाश चाहे जितनी भी अड़चनें हों।

Mrityunjay Kumar said...

विषय का चयन तो उत्तम है लेकिन कई बार ऐसा भी लगता है कि शब्दों की पुनरावृति हुई है। कुछ शब्दों के बार बार इस्तेमाल, जैसे .... खुदा, या फिर चाला जा रहा हूं से बुनावट थोड़ी कमजोर दिखती है ... लेकिन इतना जरूर कहुंगा कि आपकी इस कविता में लयबद्धता है ..... और हम सब की वास्तविक स्थिति को बेहतर तरीके से उठाया गया है। मृत्युंजय सिंह, आजाद न्यूज

Unknown said...

वाह फकीरा चल चला चल......चलने का नाम ही जिंदगी....जो थम गया समझो निपट गया.....राह कठिन चुनी है लेकिन जो चलते है वहीं मंजिल को पाते हैं. मंजिल कभी किसी के पास नहीं आती...इसीलिए तो इसे मंजिल(Destination) कहते हैं

Abhishek said...

जो चलती रहे वही तो ज़िन्दगी है,जिसे सिर्फ मौत ही अपने आँचल में सुला सकती है.अभी तो मंजिल की और कुछ ही कदम बढ़े हैं और मज़ा तो कठिन परिस्थितियों में आगे बढ़ने का है.बहुत किस्मत वाले होते हैं वो जिनकी राह-ए-मंज़िल कठिन होती है.

yun hi ek khayal mein said...

रुक जाना नहीं तुम कहीं हार के...चलने के नियम ही तो हैं हमारे इस संसार के ....कहीं पर स्पीड ब्रेकर तो कहीं पर समतल ज़मींन मिलती नहीं हर किसी को और जिसको मिल जाए वही ख़ुशकिस्मत है....जैसे कि तुम बंधु...

Minakshi Pant said...

अरे अरे दोस्त आप तो इतनी जल्दी थक गये अरे चलते रहने का नाम ही तो जिंदगी है अगर रुक जाओगे तो फिर आगे का सफ़र केसे तय होगा जी सो चलते रहो - चलते रहो |
अपने एहसास को बखूबी से ब्यान करती रचना |